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स यो वृषा॑ न॒रां न रोद॑स्यो॒: श्रवो॑भि॒रस्ति॑ जी॒वपी॑तसर्गः। प्र यः स॑स्रा॒णः शि॑श्री॒त योनौ॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa yo vṛṣā narāṁ na rodasyoḥ śravobhir asti jīvapītasargaḥ | pra yaḥ sasrāṇaḥ śiśrīta yonau ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। यः। वृषा॑। न॒रान्। न। रोद॑स्योः। श्रवः॑ऽभिः। अस्ति॑। जी॒वपी॑तऽसर्गः। प्र। यः। स॒स्रा॒णः। शि॒श्री॒त। योनौ॑ ॥ १.१४९.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:149» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (श्रवोभिः) अन्न आदि पदार्थों के साथ (नराम्) मनुष्यों के बीच (न) जैसे वैसे (रोदस्योः) आकाश और पृथिवी के बीच (जीवपीतसर्गः) जीवों के साथ पिया है सृष्टिक्रम जिसने अर्थात् विद्या बल से प्रत्येक जीव के गुण-दोषों को उत्पत्ति के साथ जाना वा (यः) जो (सस्राणः) सब पदार्थों के गुण-दोषों को प्राप्त होता हुआ (योनौ) कारण में अर्थात् सृष्टि के निमित्त में (प्र, शिश्रीत) आश्रय करे उसमें आरूढ़ हो (सः) वह (वृषा) श्रेष्ठ बलवान् (अस्ति) है ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो नायकों में नायक, पृथिवी आदि पदार्थों के कार्य कारण को जाननेवालों की विद्या का आश्रय करता है, वही सुखी होता है ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

यः श्रवोभिर्नरां न रोदस्योर्जीवपीतसर्गोऽस्ति यश्च सस्राणो योनौ प्रशिश्रीत स वृषास्ति ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (यः) (वृषा) श्रेष्ठो बलिष्ठः (नराम्) नृणाम् (न) इव (रोदस्योः) द्यावापृथिव्योः (श्रवोभिः) अन्नादिभिः सह (अस्ति) (जीवपीतसर्गः) जीवैः सह पीतः सर्गो येन (प्र) (यः) (सस्राणः) सर्वगुणदोषान् प्राप्नुवन् (शिश्रीत) श्रयेत (योनौ) कारणे ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यो नायकेषु नायकः पृथिव्यादिकार्यकारणविद्विद्यामाश्रयति स एव सुखी जायते ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो नायकांमध्ये नायक असतो. पृथ्वी इत्यादी पदार्थांचे कार्य कारण जाणणाऱ्या विद्येचा आश्रय घेतो तोच सुखी होतो. ॥ २ ॥